फणीश्वरनाथ रेणु और नागार्जुन की आंचलिक रचनाओं को पढ़िए।


(क) फणीश्वरनाथ रेणु का उपन्यास ‘मैला आँचल’ पठनीय है। विद्यालय के पुस्तकालय से लेकर पढ़िए।

मैला आँचल फणीश्वरनाथ रेणु का प्रतिनिधि उपन्यास है| यह हिंदी भाषा के सर्वश्रेष्ठ एवं आंचलिक उपन्यासों के वर्ग में शीर्ष स्थान रखता है| इस उपन्यास में रचनाकार ने बिहार के पूर्णिया जिले के एक गाँव मेरीगंज जोकि नेपाल की सीमा से सटा हुआ की पृष्ठभूमि को लिया है एवं उसके ऊपर ही इस उपन्यास की कथा को रचा गया है| वे कहते हैं कि इसमें फूल भी है, शूल भी है, धूल भी है, गुलाब भी है और कीचड़ भी है। मैं किसी से दामन बचाकर निकल नहीं पाया। इसमें गरीबी, रोग, भुखमरी, जहालत, धर्म की आड़ में हो रहे व्यभिचार, शोषण, बाह्याडंबरों, अंधविश्वासों आदि का चित्रण है। शिल्प की दृष्टि से इसमें फिल्म की तरह घटनाएं एक के बाद एक घटकर विलीन हो जाती है। और दूसरी प्रारंभ हो जाती है। इसमें घटनाप्रधानता है किंतु कोई केन्द्रीय चरित्र या कथा नहीं है। इसमें नाटकीयता और किस्सागोई शैली का प्रयोग किया गया है। रेणु को एवं उनके उपन्यास मैला आँचल हिन्दी में आँचलिक उपन्यासों के प्रवर्तन का श्रेय भी प्राप्त है।


(ख) नागार्जुन का उपन्यास ‘बलचनमा’ आँचलिक है। उपलब्ध होने पर पढ़ें।


बलचनामा नागार्जुन का एक महत्वपूर्ण उपन्यास है| इसकी गणना हिंदी की कालजयी रचनाओं में की जाती है| इसे हिंदी के प्रथम आंचलिक उपन्यास होने का गौरव भी प्राप्त है| इसमें भारत के अतीत में व्याप्त सामंती प्रथा एवं उससे शोषित किसानों एवं जनसाधारण के जीवन को विषय के तौर लिया गया है| नागार्जुन भी प्रेमचंद की धारा के उपन्यासकार हैं अंतर इतना है कि प्रेमचंद उत्तर भारत के उत्तर-प्रदेश, अवध, बनारस के क्षेत्र के किसानों की गाथा को अपनी रचनाओं के माध्यम से प्रस्तुत करते हैं जबकि नागार्जुन मिथिला अंचल में रहने वाले जनसाधारण के जीवन कि अपने उपन्यासों की विषयबस्तु के रूप में लेते हैं|


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